Friday, June 22, 2012

उत्तर क्षेत्र संघ शिक्षा वर्ग द्वितीय वर्ष का समापन समारोह


उत्तर क्षेत्र संघ शिक्षा वर्ग द्वितीय वर्ष का समापन समारोह

तारीख: 6/19/2012 5:02:25 PM
$img_title(VSK-Indraprastha)16 जूननई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा अपने स्वयंसेवकों के विकास, संघ के संस्कारों से परिचय एवं राष्ट्रभक्ति की भावना जागृत करने के उद्देश्य से समय-समय पर संघ शिक्षा वर्गों का आयोजन किया जाता है। उसी परम्परा के अन्तर्गत संघ शिक्षा वर्ग द्वितीय वर्ष का प्रशिक्षण शिविर नई दिल्ली में रोहिणी स्थित महाराजा अग्रसेन तकनीकी संस्थान में 27 मई से प्रारम्भ किया गया। इस शिविर का समापन समारोह शनिवार 16 जून 2012 को सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख माननीय भागय्या जी थे। 
वर्ग प्रतिवेदनवर्ग का प्रतिवेदन प्रस्तुत करते हुए इस वर्ग के कार्यवाह श्रीमान सत्यव्रत शास्त्री जी ने बताया कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विभिन्न स्तर पर अपने कार्यकर्ताओं के शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक विकास के लिए प्रशिक्षण वर्ग आयोजित करता है। उसी क्रम में उत्तर क्षेत्र का द्वितीय वर्ष (सामान्य-जिसमे चालीस वर्ष के कम आयु वर्ग के प्रशिक्षणार्थी सम्मिलित होते हैं) का वर्ग महाराजा अग्रसेन तकनीकी शिक्षा संस्थान में २७ मई २०१२ से १६ जून २०१२ तक आयोजित किया गया| जिसमे दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, जम्मू-कश्मीर तथा हिमांचल आदि प्रान्तों को मिलाकर १२९ शिक्षार्थियों ने भाग लिया| इनमे ११वी कक्षा के १८, १२वीं के ५२, स्नातक के १४, स्नातकोत्तर के ५, व्यावसायिक शिक्षा के ८, व्यवसायी ३१ और कर्मचारी २१ उपस्थित रहे। वर्ग में १७ शिक्षक और ४४ प्रबंधक भी पूर्ण समय के लिए उपस्थित रहे| सभी ने अपने गणवेश, भोजन आदि का खर्चा स्वयं वहन किया।
$img_titleवर्ग की दिनचर्या प्रात:काल ४:१५ से शुरू होकर रात्रि १०:३० बजे तक रहती है| बौद्धिक वर्ग के लिए उत्तर क्षेत्र के संघचालक माननीय बद्रीलाल जी, क्षेत्रीय कार्यवाह माननीय सीताराम जी व्यास, क्षेत्रीय प्रचारक माननीय रामेश्वर जी के साथ-साथ अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य माननीय दिनेश जी एवं अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख माननीय भागय्या जी इनका मार्गदर्शन प्राप्त हुआ| वर्ग का सौभाग्य रहा की परमपूजनीय सरसंघचालक मोहन राव जी भागवत का तीन दिन सानिध्य प्राप्त हुआ। 
माननीय भागय्या जी का उदबोधनमाननीय भागय्या जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि, गर्मी के इस भीषण समय में भी बड़ी प्रसन्नता के साथ हम सबने शक्ति का, संयम का, प्रसन्नता का दर्शन किया है। आप सब को लगा होगा, मुझे भी लगा है, धीरे-धीरे शारीरिक प्रदर्शन से प्रारंभ होकर वर्ग समापन समारोह जैसे-जैसे योगासन पर आया, एक शांति का, संयम का, प्रेम का, आत्मीयता का अलग ही भाव अपने मन में जगा है। यही शक्ति का दर्शन है| ये दुर्गा शक्ति का दर्शन है| ये सरस्वती मॉं का दर्शन है और ये सम्पूर्ण शक्ति का दर्शन है; और ऐसी शक्ति का दर्शन कर लेने से अपने को आनंद मिलता है, शांति मिलती है| ऐसा सर्व-साधारण समाज में ऊर्जा बढ़ाना, सर्व साधारण समाज को संगठित करना, यही इस देश के लिए अत्यंत आवश्यक है, ऐसा संघ ने समझा है| इसलिए संघ सर्वसामान्य व्यक्तियों को प्रशिक्षण देता है। ये तो संघ शिक्षा वर्ग है, लेकिन संघ शिक्षा वर्ग के बाहर भी शाखाओं के द्वारा, कार्यक्रमों द्वारा, संघ के शिविरों द्वारा, सर्वसामान्य जनता को प्रशिक्षण देना ये संघ की पद्धति है। केवल संघ ही नही ऐसे सभी व्यक्ति, संगठन जो इस देश का हित चाहते हैं, इस मत को मानते और समर्थन करते हैं|
हमारे पूर्व राष्ट्रपति मान्यवर श्री अब्दुल कलाम जी जब राष्ट्रपति बने तो पत्रकारों ने उनसे प्रश्न पूछा कि वर्तमान में भारत आतंकवाद, आन्तरिक सुरक्षा और कई प्रकार की समस्याओं से जूझ रहा है, उसका समाधान क्या है? उन्होंने उत्तर दिया कि, भारत में रहनेवाले सभी जाति और धर्मों के लोगों को आध्यात्मिक बनाना चाहिए| आध्यात्मिक होने से कई समस्याओं का समाधान हो जायेगा| आप ईश्वर है, हम ईश्वर हैं, ये माताएं, बहने ईश्वर हैं, यहॉं उपस्थित सारा जनसमुदाय ईश्वर है,  ऐसी भावना मन में हो! भगवान कहते हैं, ‘एकोSहम् बहुस्याम्’, मै अकेला ही कई रूपों में परिणित हुआ, इसलिए सब जगह मुझे अनुभव करो! इससे प्रेम बढेगा, एकात्मता आयेगी| यही मानवमात्र में भगवान का दर्शन एवं मानवता की सेवा ही हिंदुत्व है। अब इसके लिए वातावरण बने इसलिए संघ यह सब करता है।
आज हमारे देश में जो शिक्षा दी जा रही है उसमें ज्ञान व तकनीकी तो सम्मिलित हैं, किन्तु नैतिक पक्ष पर ध्यान नहीं दिया जा रहा। समाज क्या होता है, संस्कार क्या होते हैं, हमें किसके साथ किस प्रकार का बर्ताव करना चाहिए। ये सारी बातें शिक्षा पद्यति में सम्मिलित की जानी चाहिए। ऐसा भी नहीं है कि हमारे देश से संस्कार लुप्त हो गए हैं। आज भी माताएं अपने बच्चों को संस्कार सिखाती हैं और भारत इसीलिए जिंदा है। जैसे इस वर्ग के लिए 3000 माताओं ने भोजन व्यवस्था में सहयोग दिया, उनका हमारा क्या सम्बन्ध है। कोई भौतिक संबन्ध नहीं है किन्तु हम एक ही देश के निवासी हैं और हमारे बीच एक आध्यात्मिक संबंध है और यही भारत की विशेषता है।
जो लोग संविधान की बातें करते हैं वही संविधान का उल्लंघन भी करते हैं। उत्तर प्रदेश का चुनाव आया तो सरकार ने अल्पसंख्यकों के लिए साढ़े चार प्रतिशत आरक्षण की घोषणा कर दी। अब हैदराबाद हाईकोर्ट ने फटकार लगाई कि ये तो संविधान सम्मत नहीं है। ऐसा आपने क्यों किया? सरकार के पास इस बात का कोई जवाब नहीं है। सुप्रीम कोर्ट में आए और वहां भी उन्हें फटकार सुननी पड़ी। तो थोड़े से स्वार्थ के लिए राष्ट्रीय अखण्डता से समझौता नहीं किया जाना चाहिए। अभी कश्मीर समस्या को सुलझाने हेतु वार्ताकारों की नियुक्ति की गई थी। उस समिति ने जो सुझाव सरकार को दिए हैं उनसे ऐसा प्रतीत होता है कि वो कश्मीर को भारत से अलग रखना चाहते है। जैसे कश्मीर से केन्द्र के अधिकार कम किए जाएं। धारा 370 को स्थाई मान्यता दी जाए, मतलब आगे भी कोई भारतीय कश्मीर में जमीन-जायदाद न खरीद पाए, इस चीज को स्थायी रूप से लागू किया जाए। कश्मीर के मुख्यमंत्री और राज्यपाल को प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति का दर्जा दिया जाए। रक्षा और सेना को छोड़कर किसी भी मामले में केन्द्र का हस्तक्षेप न हो। समझ से परे है कि ये रिपोर्ट कश्मीर को भारत से अलग करने के लिए बनाई गई है या जोड़ने के लिए। आप लोगों को पता है भूमि हमारी मॉं है। गॉंवों में जमीन के एक टुकड़े के लिए हमारी माताएं-बहनें तक जान की बाजी लगा देती हैं और कश्मीर को हिन्दुस्तान से अलग करने का षड्यंत्र किया जा रहा है। अभी आंध्र प्रदेश में हमारी सरकार नहीं है किन्तु वहां के जो चार मेडिकल कॉलेज हैं वहां के विद्यार्थी हमारे स्वयंसेवकों की प्रेरणा से सेवा भारती जैसे संगठनों में नियमित रूप से सेवा कार्य करते  हैं। संघ चाहता है कि राष्ट्रहित में सारी आध्यात्मिक एवं राष्ट्रवादी ताकतें एकजुट हों, लेकिन ऐसा अहंकार भी नहीं है कि सिर्फ संघ ही अच्छे कार्य कर सकता है। कई बार हमारे स्वयंसेवक हतोत्साहित हो जाते है, इसकी आवश्यकता नहीं है, उनको लगता है समाज में इतनी अराजकता हो गई, सरकार और जिम्मेदार संस्थाएं राष्ट्र और समाज हित के कार्यों से दूर हैं। हमारे अकेले प्रयासों से समाज का क्या भला होने वाला है। द्वापर युग में भी द्रौपदी का चीरहरण हुआ था। तब भीम ने प्रतिज्ञा ली थी कि अभी हम कमजोर हैं जब ताकतवर होंगे तो दुष्टों को दण्ड देंगे। इसी प्रकार संघ, हिन्दू समाज और भारतीय जन-मानस के अंत:करण में बसा हुआ है। संघ का अर्थ संगठित होना है। जब हिन्दू संगठित होगा तो हम एक समग्र शक्ति के रूप में उभरेंगे और समाज तथा राष्ट्र का हित कर सकेंगे। 
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